एक नदी की हत्या
वाराणसी जिसको कभी जल तीर्थ भी माना गया था वहाँ पर नदियों और तालाबों की दुर्दशा देख आज के विकास का नया माडल सवालों के घेरे में आ गया है। वाराणसी में बहने वाली असि नदी जो कभी इतना वर्चस्व रखती थी की वाराणसी (वरुणा + असि ) के नाम का हिस्सा थी आज अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। आज असी नदी नाला बना दी गई है । इसे नाला घोषित करने के बाद तो मानो इस
पर कब्जा करने की होड़ लग गयी। इसके लम्बे चौड़े पाट-किनारों पर भू-माफियाओं की
निगाह ऐसी गड़ी कि मात्र पिछले 10
वर्षों में ही इन भू-माफियाओं, धन
पिपासुओं ने इसे नाले से नाली में बदल दिया। वाराणसी की पहचान इस प्राचीन नदी पर
कब्जा करने वालों में आज कौन शामिल नहीं है। इसमें महाविद्यालयों से जुड़े शिक्षक
हैं, प्राचार्य हैं, राजनेता हैं, वकील हैं, प्रशासनिक अधिकारी हैं और तो और सन्त-महात्मा भी हैं। वाराणसी नगर
निगम, वाराणसी विकास प्राधिकरण, राज्य सरकार , राजनेता-व्यापारी- नौकरशाह, सब
ने असी को सुखाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी है। पैसा देकर सरकारी कागजातों
में असी नदी के प्रवाह मार्ग के सूखे भूखण्ड पर अवैध तरीके से पहले व्यक्तिगत नाम
चढ़वाए गए, फिर पुलिस-प्रशासन और सत्ता की आड़ लेकर इन भूखण्डों पर कब्जा किया
गया। विडम्बना तो यह है कि यह प्रक्रिया उस राज में ज्यादा परवान चढ़ी जिन्होंने
हिन्दू सभ्यता और संस्कृति के नाम पर एक प्रकार से पिछले पन्द्रह वर्षों से
वाराणसी पर अपना शासन जमा रखा था। वाराणसी नगर निगम पिछले 10 वर्षों
से भाजपा के पास है, वाराणसी लोकसभा की सीट तो 1990 से लगातार भाजपा के
पास रही। लेकिन किसी को फुरसत नहीं कि दम तोड़ चुकी असी को पुनरुज्जीवन दे सके।
और तो और, असी
घाट स्थित असी संगम स्थान के ऊपर ही कुछ वर्ष पूर्व एक विशालकाय आश्रम भी बन गया।
असी का संगम स्थान जब अपने मूल स्थान से प्रशासन द्वारा हटा दिया गया तब जो स्थान
रिक्त हुआ, उस सरकारी जमीन पर अनेक लोगों की निगाहें गड़ गईं। कुछ ही वर्ष पूर्व
उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री की कृपा से उक्त संगम स्थान को एक आश्रम के
भवन के लिए निर्धारित कर दिया गया। जो भी हो, जाने या अनजाने में असी के
मूल संगम स्थान पर भव्य आश्रम-प्रासाद खड़ा करके इस प्राचीन नदी को, जिसके
कारण वाराणसी का अस्तित्व संसार के समक्ष आया, अन्तिम विदाई दे दी गई। असी को इस स्थिति तक
पहुंचाने वालों की सूची में बिहार कैडर के एक वरिष्ठ आई.पी.एस.अधिकारी और
जाने-माने विद्वान भी हैं। संकट मोचन मंदिर के पास असी नदी के मुहाने पर अपनी प्रसिद्ध मिठाई की दुकान "स्वादिष्ठम" नाम से खोली है।
और इसके उद्घाटन में सम्मिलित होने वालों में काशी की प्रसिद्ध संस्कृतिनिष्ठ
हस्तियां तो थी हीं, पूर्व केन्द्रीय मंत्री और एक राज्यसभा सदस्य भी पधारे। उस समय
अखबारों में जब हल्ला मचा तो उक्त अधिकारी ने अपने वैधानिक कागज-पत्रों के आधार पर
स्पष्ट किया कि असी नाले से कुछ फुट जमीन छोड़कर ही यह भवन बनाया गया है। आश्चर्य
इस बात का है कि आज जब सामान्य सी बरसात भी हो जाए तो यह नदी अपना पूर्व रूप लेने
लगती है, लेकिन असी की सीमा अब मात्र 6 से 8 फुट
बताई जाने लगी है।
बहरहाल, इन
सबसे अलग भी कुछ ऐसे लोग हैं काशी में जो असी की दुर्दशा देखकर विक्षुब्ध हैं और
उसे उसके पुराने वैभव को लौटाने के लिए संकल्पबद्ध हैं। । तुलसी मानस मंदिर के प्रबंधक श्री त्रिलोचन शास्त्री के अनुसार एक समय था जब पंचक्रोशी करने वाले नदी में नहाते थे लेकिन आज नदी को नाला कहे पर क्षोभ होता है। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के इंजीनियरिंग कालेज
में प्रोफेसर रहे तथा गंगा परियोजनाशाला के संस्थापक प्रो. उदय कान्त चौधरी के अनुसार असि नदी को वैज्ञानिक परिभाषा में मरी या नाला नहीं घोषित किया जा सकता क्योंकि अभी भी नदी में रिवर कैरक्टर मौजूद है। मजे की बात है की विकास वाद की नयी परिभाषा में असि को पूरी तरह से दफ़न करने का मन बना लिया है। जल निगम द्वारा चल रहे गंगा एक्शन प्लान में असि को नाला मान कर पाटने का काम शुरू हो गया है कई स्थानों पर ६-७ फुट पाइप में असि नदी डाली जा रही हैं। जब इस बाबत गंगा एक्शन प्लान के GM ए.के . सिंह से सवाल पूछे गए तो वो बगले झांकते नज़र आये और कहा की क्या करें काम तो करना है। नगर निगम के पास भी कोई उत्तर नहीं लेकिन हाँ खामियों से भरे इस परियोजना से कुछ हो न हो एक पौराणिक नदी जिसका गुप्तकालीन, गौरवशाली इतिहास रहा है की हत्या हो जायेगी।
असी और भदैनी
मुहल्ले में भी समाप्त हो रही असी के प्रश्न पर बैचेनी है। असी नदी के निकट मुहल्ले में ही
रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता कपीन्द्र नाथ तिवारी असी नदी को वाराणसी की प्राण रेखा
बताते हैं। उनके अनुसार,
"इस नदी को जिस दिन इसके मूल स्थान
से हटाया गया उसी दिन से असि की उलटी गिनती शुरू हो गयी थी और जब असी ही नहीं बची तो
काशी कहां से बचेगी?" असी पर लगातार हो रहे अतिक्रमणों के प्रति वाराणसी प्रशासन सदा से
मौन रहा है। यदि असि को पाइप में दाल कर पात दिया गया तो पूरे विश्व में यह पहली जीवित नदी होगी जिसको विकासवाद के नाम पर बलि चढ़ाया गया हो।
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