Thursday, October 30, 2008
सियासत गरम है : रोटियां सेंक लो
अगर कश्मीर के अलगाव वादियों ने कश्मीर से कश्मीरी पंडितो को विस्थापित किया तो वो आतंकवादी की हद में आ गए यहाँ पर भी तो वैसी ही स्थिति हो चली है । प्रश्न यह उठता है की क्यों महारास्ट्र में ही अलगाव की राजनीती फलती फूलती है कारण साफ़ है क्यों की मराठियों को ही लगता है की वो सबसे अधिक सताए गए है और उनकी चीज़ों को उत्तर भारतियों ने लूटा है लेकिन यहाँ ऐसा नही है क्योंकि मुंबई को मुंबई उत्त भारतियों ने बनाया है न की मराठियों ने । ये देखने वाली बात होगी की अलगाव का जहर जो राज ने बोया है वो कहा तक पनपेगा और उसका जहरीला फल कौन चखेगा क्योंकि ये इंडिया है बीडू यहाँ कोई करता है कोई भरता है ।
Saturday, October 25, 2008
बहती गंगा : पुस्तक ही नही जीवन शैली
यूँ तो शिव प्रसाद मिश्र 'रुद्र काशिकेय' का नाम साहित्य में प्रेमचंद जैसी ऊँचाई नही पा सका, लेकिन उनके लेखनी की धार कोई साहित्य का मर्मज्ञ ही समझ सकता । 'काशिकेय' की कृति 'बहती गंगा' आज से चालीस साल पूरानी पुस्तक है लेकिन पुस्तक में आज भी वही ताजगी है जो उस वक्त थी । इस किताब के लेखन शैली में आंचलिकता और भोजपुरी का जो कलेवर चढा है वह पुस्तक की शैली को और नयापन देता है
बहती गंगा महज एक उपन्यास ही नही अपितु बनारसी वीरो ,वीरंगानाओ की गाथा है । इस किताब की खासियत है किरदार का चित्रण । बनारसी शब्दों का उपयोग और भी आंचलिकता प्रदान करता है 'मरकिनौना' बज्जर परे ' 'का गुरु पालागी' और आलंकारिक लेखन 'जैसे लकड़ी आते देख लड़का छलका फ़िर भी छोर छू जाने से छिलोर सी लग गई'।
अगर ओने निघत अत कॉल सेण्टर जैसी पुस्तकों पर फ़िल्म बनाई जा सकती है तो निश्चय बहती गंगा अभी बॉलीवुड के नज़र से दूर है । इस पुस्तक में विरह का जो मार्मिक चित्रण है वह अप्राप्य है ।
लेखक ने पुस्तक में आंचलिक ,भजन का भी अच्छा उपयोग किया है जैसे' एही ठैयां झुलनी हेरने हो रामा ................. से लेकर नगर नैया जाला काले पनिया रे हरी ............. का भव्य उपयोग कथा को रोचक और मार्मिक बना देता है।
पुस्तक की कुछ पंक्ति देना चाहूँगा
-यहाँ देख भिछुक के अधरों पर उस भुवन मोहन की रेखा खिंच गई जो पुरूष के मुह लगती तो उसे देवता बना देती है और जब नार के अधरों पर खेलती है तो नारी कुलटा कहलाने लगती है"
-सुर ने उसे असुर की शक्ति दे राखी थी और तान ने उसे शैतान बना रखा था
- नारी का प्रेम पुरूष को उन्नत बनता है परन्तु पुरूष का प्रेम नारी को गिरता है
आज के दौर में साहित्य की कम लोकप्रियको देखते हुए कहा जा सकता है लेखन तो आज भी दमदार है हाँ पढने वाले ही शायद कम हो गए है सही बात है 'गुन ना हेरानो गुन गाहक हेरानो है' ।